धार: धार जिला जेल में बंद नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने आज शरबत पीकर 17वें दिन अपना अनिश्चितकालीन अनशन समाप्त कर दिया।
धार जिला जेल के अधीक्षक सतीष कुमार उपाध्याय ने यह जानकारी दी है। मेधा सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिये उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में 27 जुलाई से अनशन पर बैठी थीं। अनशन के 12वें दिन सात अगस्त को पुलिस ने उन्हें धरना स्थल से बलपूर्वक उठा दिया था और इंदौर के एक अस्पताल में तीन दिन तक उपचार के बाद छोड़ दिया था। लेकिन उसी दिन नौ अगस्त को उन्हें उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वह अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद दुबारा चिखल्दा अनशन स्थल की ओर जा रही थीं।
मेधा को नौ अगस्त को धार जाते वक्त पीथमपुर से उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वह इंदौर के बॉम्बे अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फिर से चिखल्दा गांव में धरना दे रहे सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों से मिलने धार जिले की ओर जा रही थीं।
इंदौर रेंज के अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक अजय शर्मा ने बताया था, ‘‘पुलिस ने उन्हें कह दिया था कि चिखल्दा इलाके में धारा 144 लागू होने के कारण वह वहां नहीं जा सकती हैं, लेकिन फिर भी वह वहां जा रही थीं। इसलिए हमने उन्हें गिरफ्तार किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने मेधा को कहा कि वह धारा 144 के प्रावधान का उल्लंघन न करने के लिए एक बांड भरे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा था।’’ मेधा सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिये उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में 27 जुलाई को अपने 11 अन्य साथियों के साथ अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठी थीं और पुलिस ने उन्हें उनके अन्य साथियों के साथ अनशन के 12वें दिन सात अगस्त को धरना स्थल से बलपूर्वक उठाया था।
मेधा की मांग है कि विस्थापितों के उचित पुनर्वास के इंतजाम पूरे होने तक उन्हें अपनी मूल बसाहटों में ही रहने दिया जाये और फिलहाल बाँध के जलस्तर को नहीं बढ़ाया जाये। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश की नर्मदा घाटी में पुनर्वास स्थलों का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है। ऐसे कई स्थानों पर पेयजल की सुविधा भी नहीं है। लेकिन प्रदेश सरकार हजारों परिवारों को अपने घर-बार छोड़कर ऐसे अधूरे पुनर्वास स्थलों में जाने के लिये कह रही है। यह स्थिति विस्थापितों को कतई मंजूर नहीं है और ज्यादातर विस्थापित अब भी घाटी में डटे हैं।