अपने घर से 915 किलोमीटर दूर लखनऊ में शान्ति गोपाल का चाय बेचने का कारोबार है. वो रोज़ सुबह घर से निकलते हैं और शाम को ठीक सात बजे वापिस घर के रास्ते पर चल देते हैं. लखनऊ के मवैया इलाक़े में रहने वाले शांति गोपाल पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के हैं.
अपने ही तरह की हिंदी में शान्ति बताते हैं कि 12 साल पहले वह लखनऊ में आये थे. तब से वो यहीं रहते हैं. सुबह से लेकर शाम तक चाय बेचना और रात में घर जाकर खाने पीने का इन्तिज़ाम करना और फिर सुबह खाना पीना खा कर चाय बेचने निकल जाना. वह बताते हैं कि वह तीन साल में एक बार घर जाते हैं और अपनी माँ, पत्नी और बच्चे से मुलाक़ात करते हैं. शान्ति बताते हैं कि हर बार जब वह पश्चिम बंगाल जाते हैं तो वहाँ से चाय बनाने को मसाला लेकर आते हैं जो तीन साल तक चलता है. वह कहते हैं कि गर्मियों के मौसम में वह 5 प्रकार के मसालों का प्रयोग करते हैं और सर्दियों में आठ. ये मसाले उनकी पत्नी बनाती हैं.
शान्ति की कोई परमानेंट दुकान नहीं है. वह एक स्टोव, उस पर एक केतली रख कर और थोड़ा बहुत सामान लेकर नीबू वाली चाय बेचते हैं. उनके ग्राहक राहगीर ही हैं. अक्सर उनका झोला विधानसभा मार्ग से होता हुआ GPO स्थित गांधी प्रतिमा पर पहुँचता है. गांधी प्रतिमा जो कि शहर का महत्वपूर्ण राजनीतिक स्थल है जहाँ अक्सर विरोध प्रदर्शन,धरने वग़ैरा होते रहते हैं. वह कहते हैं,”कभी कभी तो यहाँ बहुत भीड़ हॉता है पिछली बार भीड़ हुआ था तो 10 हज़ार लोग था”.
हमने उनसे जब ये सवाल किया कि उनके कितने बच्चे हैं तो वह कहते हैं कि अरे भाई 7-8 हज़ार कमाते हैं, एक बच्चा ही है इसलिए. और जब ये सवाल करो कि अपने परिवार को यहाँ क्यूँ नहीं ले आते तो वह सखते हैं,”वहाँ बांग्ला में पढ़ाई होता है इसलिए परिवार वहाँ है.. माँ, पत्नी और बच्चा सब वहाँ रहता”
अपने परिवार के बारे में जब शान्ति बात करते हैं तो उनका चेहरा खिल जाता है.औसत से कम कमाई में भी जिस मिज़ाज से वह अपने को ख़ुश रख पाते हैं ये भी एक कामयाबी ही है.