दिवाली एक ऐसा त्यौहार माना जाता है जिसकी तैयारी लोग महीनों से कर रहे होते हैं लेकिन इस बार की दिवाली बाक़ी दिवाली की तुलना में फीकी ही रही. सरकारी कार्यक्रमों की बात छोड़ दें तो आम इंसानों के लिए दिवाली सिर्फ़ एक परम्परा निभाने वाली बात ही रह गयी. इस बार की दिवाली में ना बाज़ारों में ही उतनी रौनक़ नज़र आयी और ना ही घरों में उस तरह से लाइट्स लगीं.
इसके पहले धनतेरस के रोज़ भी ख़रीदारी पहले की तुलना में आधी से भी कम हुई. हमने इस बारे में पड़ताल करने की कोशिश की तो लोगों ने इसके पीछे नोटबंदी और GST को ज़िम्मेदार बताया.
कुछ लोगों ने ये भी कहा कि पिछले सालों में बेरोज़गारी बढ़ी है और अगर बेरोज़गारी होगी तो लोगों के पास पैसे तो होंगे नहीं, इसलिए बाज़ार में रौनक़ कम ही रहती है.
व्यापारियों का कहना है कि नोटबंदी के बाद भीड़ तो बाज़ार से ख़त्म ही हो गयी थी लेकिन धनतेरस में भीड़ नज़र आयी. एक व्यापारी ने बताया कि भीड़ ज़रूर नज़र आ रही है लेकिन लोग बहुत बड़ी ख़रीदारी नहीं कर रहे हैं. व्यापारियों का दावा है कि जो लोग पहले 50 हज़ार की ख़रीदारी करते थे वो 10-15 हज़ार की ख़रीदारी कर रहे हैं.
लोगों की बड़ी नाराज़गी वित्त मंत्री अरुण जेटली से नज़र आती है. व्यपारियों का कहना है कि मोदी सरकार को चाहिए कि जनता के हित में फ़ैसले लें और व्यापारियों का ख़याल रखें.. GST और नोटबंदी जैसी नीतियों की वजह से बाज़ार पूरी तरह से ख़त्म हो गया है. एक सोने के व्यापारी ने बताया कि बाज़ार इतना मंदा है कि यहाँ वाले लोग वापिस गांव जा रहे हैं और गांव के लोग सोचते हैं कि शहर में व्यापार मिलेगा तो वो यहाँ आते हैं.
असर हर चीज़ पर नज़र आ रहा है फिर चाहे वो मिठाई हो या फिर भगवान् की मूर्तियाँ. लोग बस प्रसाद और आस्था के निर्वाह के लिए सामान ख़रीद रहे हैं.