लखनऊ: कभी अर्श पर और आज फर्श पर पड़ी कांग्रेस हो या चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल, दोनो ही पार्टियों के सबसे बुरे दिनों में कम से कम हर हफ्ते दोयम दरजे के ही सही कुछ न कुछ नेता शामिल हो रहे हैं। सडकों पर भी ये राजनैतिक दल कम ही तादाद में सही पर उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।
मुलायम के हाथों से छीन, संगठन की रीढ़ रहे चाचा शिवपाल को दरकिनार कर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी की कमान संभाल रहे अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी का हाल इन दिनों कांग्रेस और रालोद से बुरा नजर आता है। बीते चार महीनों में सपा से दर्जन भर कद्दावर नेता, फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारी, विधान परिषद सदस्य पार्टी छोड़ चुके हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। विधानसभा चुनावों के बाद शायद ही किसी तहसील या ग्राम सभा स्तर के नेता ने सपा में शामिल होने के लिए दस्तक दी हो।
योगी सरकार की दिन पर दिन बढ़ती जा रही नाकामियों की फेहरिस्त, जनता में बढ़ते गुस्से और प्राशसनिक सुस्ती पर अखिलेश की चुप्पी या उदासीनता कम से कम उन्हे महज 18 महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में कहीं से भी मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती देना तो दूर ताल ठोंकने लायक भी नही दिखा रही है।
नोटबंदी की विफलता दर्शाती रिजर्व बैंक की रिपोर्ट पर अखिलेश यादव का उपहास लायक बचकाना ट्वीट हो या कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने पर जिसे जाना हो चला जाए जैसा बयान कम से कम उन्हें एक ताकतवर विपक्ष को नेतृत्व देने लायक तो नही साबित करते हैं। विपक्षी महाएकता के लिए पटना में लालू की बुलायी रैली में अखिलेश शामिल तो हुए पर अपने भाषण से वो प्रभाव नही छोड़ पाए जो कभी उनके पिता मुलायम सिंह इन मंचों से दहाड़ लगाते हुए छोड़ते थे।
उत्तर प्रदेश की राजधानी में सभी गुलजार रहने वाले समाजवादी पार्टी दफ्तर का हाल बहुत कुछ बयां कर देता है। सत्ता से दूर रहने पर मुलायम और शिवपाल का ज्यादातर समय राजधानी में रहने पर समाजवादी पार्टी में गुजरता था और वहीं वह हर रोज कोने कोने से आने वाले पार्टी कार्यकर्त्ताओं से मिलते थे। आज हालात इतने बदतर हैं कि सपा दफ्तर से चंद कदमों पर रहने वाले अखिलेश के कदम शायद ही कभी वहां पड़ते हो। इससे भी बुरा क्या हो सकता है कि सपा दफ्तर के ठीक सामने रहने वाले शिवपाल यादव के बंगले पर हर सुबह सैकड़ों कार्यकर्त्ता जुटते हैं पर पार्टी के आधिकारिक कार्यालय पर कुत्ते लोट लगाते मिलते हैं।
सपा के पुराने नेताओं का कहना है कि अभी और भी बुरे दिन आने बाकी हैं। खुद अखिलेश यादव कह चुके हैं कि अभी और लोग पार्टी छोड़ेंगे। जो खबरे छन-छन कर आ रही हैं उसके मुताबिक जल्दी ही कुछ सिटिंग विधायक और बड़े नेता सपा से किनारा कर लेगें। पार्टी इस दुर्दशा पर अखिलेश की बेफिक्री कम से कम यही साबित करती है कि वो खुद ही राजनैतिक हाराकिरी (आत्महत्या) पर आमादा हैं।