हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. उनके राजनीतिक दांवपेच का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कांग्रेस पार्टी 2012 में ढलान पर थी और नरेंद्र मोदी के पक्ष में पूरे देश में माहौल बनता जा रहा था तब भी वीरभद्र ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का झंडा ऊंचा किया.
83 साल के वीरभद्र सिंह प्रदेश की राजनीति के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं और वो सुखविंदर सिंह सुखु के जाने के बाद एक मात्र ऐसे नेता बचे हैं जो पार्टी की नैया पार करा सकते हैं. इतना ही नहीं वो सुखु के कांग्रेस से अलग होने के बाद भी जीत के लिए आश्वस्त नज़र आ रहे हैं. इस बीच उन्हें हिमाचल प्रदेश चुनाव की कैंपेन समिति का चेयरमैन बना दिया है.
इस बार वीरभद्र सिंह सोलन ज़िले की अर्की सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इसके पहले ये चर्चा थी कि वो ठियोग से चुनाव लड़ेंगे. अर्की सीट को भाजपा की मज़बूत सीट माना जाता है और कांग्रेस चाहती है कि भाजपा की मज़बूत सीट को उससे छीना जाए.
2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 68 में से 36 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा की सिर्फ़ 27 सीटें आ पायी थीं. कांग्रेस की पिछली परफॉरमेंस से ये 13 अधिक थीं.
हालाँकि भाजपा भी पूरी उम्मीद कर रही है कि इस बार के चुनाव में वो वीरभद्र के ख़िलाफ़ एंटी-इन्कमबंसी का फ़ायदा उसे मिलेगा. दूसरी तरफ़ कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि वीरभद्र सिंह के ऊपर जो सीबीआई ने छापे डाले हैं उसका फायदा चुनाव में उन्हें मिल सकता है. पार्टी ये मान रही है कि लोग अपने नेता के ऊपर हुई ज़्यादतियों का जवाब चुनाव में देंगे.