कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ में क्या है विशेष अंतर और क्या है ग्रहों के गोचर से इसका संबंध
हम सभी जानते है कि हिंदु धर्म एक सनातन धर्म है जिसका सबसे बड़ा पर्व कुंभ मेले को माना जाता है । हमारे मन में कभी-कभी यह सवाल आता है कि ये तीन तरह के कुंभ क्यों होते है, इनका आपस में क्या संबंध है, तो आपके इन सवालों का जवाब इस आर्टिक में है । हर तीन साल बाद हरिद्वार, नाशिक, प्रयागराज और उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
हरिद्वार और प्रयागराज में 6 साल में एक बार आने वाले इस पर्व को अर्धकुंभ के नाम से जाना जाता है । वहीं सिर्फ प्रयागराज में 12 साल में एक बार लगने वाले इस मेले को पूर्णकुंभ कहा जाता है । इसी तरह 144 वर्षों के अंतराल के बाद प्रयागराज में होने वाले कुंभ को महाकुंभ कहते है। हिंदु पंचांग के अनुसार देवी-देवताओं के बारह दिन मनुष्य के बारह साल होते है इसलिए पूर्णकुंभ बारह साल बाद आता है ।
ठीक इसी तरिके से 144 वर्ष बाद महाकुंभ का समय आता है, कहा जाता है कि कुंभ भी बारह होते है जिसमें से चार कुंभ धरती पर मानाए जाते है, बाकी के आठ कुंभ देवलोक में होते है । सभी कुंभों में महाकुंभ का महत्तव सबसे अधिक होता है । 2013 में 144 साल बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया गया था । अब दुबारा महाकुंभ 138 सालों बाद प्रयागराज में आएगा।
जब कुंभ राशि में गुरू का प्रवेश और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब हरिद्वार में कुंभ का आयोजन किया जाता है । वहीं मेष राशि के चक्र में गुरू, सूर्य और चंद्रमा के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में कुंभ का आयोजन किया जाता है । इसी तरह जब सिंह राशि में गुरू का प्रवेश होता है जब कुंभ का आयोजन नासिक में किया जाता है । वहीं पर सिंह राशि में गुरू और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब उज्जैन में कुंभ मनाया जाता है ।