कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पुलिस अब इस नतीजे पर पहुँच गयी है कि पहलू ख़ान नाम के शख्स की हत्या के आरोप में पकड़े गए सभी 6 आरोपी निर्दोष हैं. हलांकि पहलू ने दम तोड़ने से पहले इन लोगों के नाम पुलिस को बताये थे लेकिन पुलिस को ऐसा ही लग रहा है कि इन लोगों ने पहलू की हत्या नहीं की थी.
असल में जिन लोगों पर ये आरोप लगा है वो शायद हत्या के असली दोषी हैं भी नहीं.असली दोष तो शायद उस नफ़रत का है जो बचपन से लेकर बड़े होने तक हम अपने आस पास के माहौल से सीखते हैं. हमारे घरों के अन्दर ये बात आ गयी है कि फ़लां धर्म के लड़के से बात करनी है और फ़लां से नहीं. हम अपने बच्चों को भी यही सिखा रहे हैं और जब बच्चे इस सीख के साथ बड़े होते हैं तो फिर उन्हें ज़्यादा कुछ नहीं बस एक नफ़रत से लबरेज़ भाषण की ज़रुरत होती है. और हम और आप सब जानते हैं, आजकल इस क़िस्म के “भाषण” ही भाषण कहलाते हैं. इन्हीं भाषणों में वो ज़हर है जिसको पीने के बाद समाज में ख़राब हो चुके लोग ज़हर उग़लते हैं. ये अपने आप में दिलचस्प है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करने वाले लोगों को गाली दी जा रही है और वो लोग जो एकता और अमन के विरोधी हैं उन्हें लोगों ने सिर पे बिठा लिया है.
सिर पे बिठाने में कोई कसर रही होगी तो वो इन 6 लोगों के छूट जाने के जश्न में पूरी हो जायेगी. ये साफ़ है कि जितना दुःख कुछ लोगों को इनके छूटने का होना चाहिए इनके आसपास और थोड़ा दूर वाले भी उतनी ही ख़ुशियाँ मनाएंगे और इस ख़ुशी के आस पास छोटे बच्चे भी होंगे जिन्हें ये नहीं पता होगा कि आख़िर इस ख़ुशी और उत्साह की वजह क्या है.यहीं से वो सीखेगा जो उसे कभी नहीं सीखना चाहिए.
ये हमारी और आपकी सभी की ज़िम्मेदारी है कि इस शानदार देश को और बेहतर बनाएं. हिन्दू-मुस्लिम में क्या फ़र्क़ है ये सब जानते हैं क्या दोस्ती है इसे और बताएं. मुझे पता है बड़ी आबादी में लोग ये जानते हैं कि अच्छा यही है कि लोग एक दूसरे से मिलें, बात करें और किसी तरह की नफ़रत दिलों में ना पालें, जो हो उसे दूर करें. परन्तु जो भी लोग हमारे देश में टकराव की बात कर रहे हैं, उनसे बचने की ज़रुरत है. अगर कुछ नहीं कर सकते तो उनकी आलोचना तो कर ही सकते हैं.