म्यांमार के रखीने स्टेट में रोहिंग्या के साथ हो रही हिंसा को लेकर जहां पूरे विश्व में चिंता की स्थिति है वहीँ म्यांमार की सेना इस पूरे क्राइसिस के लिए रोहिंग्या को ही ज़िम्मेदार ठहरा रही है.
म्यांमार सेना के बड़े अधिकारी जनरल मिन औंग ह्लिंग ने तो रोहिंग्या को एथनिक ग्रुप मानने से ही इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उत्तरी रखीने प्रांत में चरमपंथी इस कोशिश में हैं कि वहाँ अपना गढ़ बना लें. एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिये जनरल मिन ने कहा कि “चरमपंथी बंगालियों” के बीच हुई 93 झड़पों के बाद ही ऑपरेशन शुरू किया गया. उन्होंने रोहिंग्या लोगों को बंगाली माना.
सदियों से म्यांमार में रहने वाले रोहिंग्या लोगों को सरकार एथनिक ग्रुप मानने को तैयार नहीं है. रोहिंग्या लोगों को भारी नरसंहार का सामना करना पड़ा है. नरसंहार से बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश आ गए हैं. इसके इलावा नेपाल और भारत में भी रोहिंग्या लोग पहुंचे हैं. अब तक 4 लाख से अधिक लोग बांग्लादेश में रिफ्यूजी कैंप में रह रहे हैं. 90% बौद्ध आबादी वाले म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना के बाद रोहिंग्या लोगों की परेशानी बढ़ी है. पिछले सालों में उन्हें भारी हिंसा का सामना करना पड़ा है.
स्टेट काउंसलर औंग सैन सू की जिन्हें एक दौर में नोबेल शांति पुरूस्कार दिया गया था, अब उनसे ये पुरूस्कार वापिस लेने की मांग उठ रही है. रोहिंग्या मुद्दे में सरकार के रवैये की विश्व भर के नेताओं ने म्यांमार सरकार और स्टेट काउंसलर औंग सैन सू की की आलोचना की है.इस क्राइसिस में सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं फँसे हैं बल्कि तक़रीबन 30 हज़ार ग़ैर-मुस्लिम रोहिंग्या भी इस त्रासदी की वजह से दर-दर भटक रहे हैं.